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नज़राना इश्क़ का (भाग : 19)


सुबह होने ही वाली थी, वातावरण में सर्द हवाएं बह रही थीं। चिड़ियों का चहचहाना शुरू हो गया था, दूर किसी पहाड़ के पीछे सूरज ने बाहर निकलने की पूरी तैयारी कर रखी थी। इन चार महीनों में निमय की आदत काफी बदल चुकी थी वो अब जाह्नवी से पहले उठकर नहा धो लिया करता, यही नहीं कभी कभी तो अब उसे जाह्नवी को जगाना भी पड़ता था, इसी तरह आज भी जाह्नवी अड़ोस पड़ोस सभी के घोड़े गधे सब बेचकर चादर तानकर सोई हुई थी। निमय बार बार चादर खींच रहा था मगर जाह्नवी कसमसाते हुए दुबारा चादर छीनकर ओढ़ लेती।

"उठ जा महारानी…! अब क्या कुम्भकर्ण ने तुझे अपनी शिष्या चुन लिया है?" निमय झल्लाते हुए बोला, जाह्नवी बस हल्के से कसमसाई फिर उसी अवस्था में शांति से लेटे रही।

"अबे उठ जा गधी कहीं की…!" निमय ने उसके चेहरे से चादर हटाकर उसका हाथ खींचते हुए बोला।

"यार…एक तो समझ नहीं आता, इतना जल्दी सुबह कैसे हो जाती है…, अभी तो सूरज भी नहीं निकला, तू आज फिर से जल्दी उठ गया…!" जाह्नवी अपनी आंखें मलती हैरानी से निमय को देखते हुए बोली।

"अब क्या सूरज तुम्हें कमरे में आकर बताये की वो बाहर निकल आया है…!" निमय ने मुँह बनाते हुए कहा।

"और नहीं तो क्या…!" जाह्नवी मुंह बनाते हुए वहीं आलथी पालथी मारकर बैठ गयी।

"हे राम..! बड़ी आयी महारानी कहीं की…!" मुंह बनाकर कहते हुए निमय धम्म से उसके पास बैठ गया।

"काहे की महारानी मिस्टर घोंचू…! कल पूरे दिन घर की साफ सफाई की है, इस संडे ने तो मेरी बैंड ही बजा दी!" जाह्नवी बेहद मासूमियत से बोली, उसके कहने से लग रहा था मानो उसे कितना सताया गया हो।

"ओले ओले मेला बच्चा… थक गया क्या?" निमय ने उसका गाल खींचते हुए कहा। "तो रातभर सोई ही न? या किसी गधे का हाथ बटा रही थी, सॉरी आई मीन पैर… हाहाहा…!" जाह्नवी ने निमय को अजीब तरीक़े से घूरा, निमय उठकर तेजी से बाहर की ओर भागा।

"रुक जाए कमीने…" जाह्नवी उठकर अपनी चप्पल पहनते हुए उसके पीछे भागी, तभी उसे सामने से निमय एक ट्रे में दो कप चाय लाता दिखा।

"देख तेरे जागने से पहले आज चाय भी बना लिया मैंने.. अदरक वाली... तेरी फेवरेट!" निमय उसके नजदीक आता हुआ हँसकर बोला।

"मुझे नहीं पीना…!" जाह्नवी मुँह टेड़ा कर वहीं फर्श पर बैठ गयी।

"ओ क्या हुआ जानी? मुझसे नाराज है क्या?" निमय ने उसके बराबर सटकर बैठते हुए पूछा।

"नहीं हूँ मैं जानी किसी की…!" जाह्नवी के शब्दों में नाराजगी स्पष्ट नजर आ रही थी।

"हे भला…! अब सीरियस मत हो…! देख तो भला ऐसे लग रहा है मानो अभी खिला फूल कुम्हला गया हो.. या जैसे कि चाँद को अभी अभी ग्रहण लग गया हो… जरा सा मुस्कुरा तो दे..!"  निमय उसकी ठुड्डी पकड़कर उसके चेहरे को गौर से देखते हुए बोला।

"मस्का मारना बन्द करो, ये सब उपमाएं मेरी होने वाली भाभी को मनाने के लिए बचाकर रखना…!" कहते हुए जाह्नवी एक कप चाय उठाकर पीने लगी, इससे पहले निमय दूसरा कप उठाता उसने उसे भी जूठा कर दिया।

"अबे ओ नौटंकी…!" निमय भड़कते हुए बोला।

"जा जा किसी और को डराइयों… मुझे किसी से डर नहीं लगता।" जाह्नवी ने मुँह बनाकर कहते हुए उसे घूरा।

"अब क्या? मेरा कप मुझे दो बस…!" निमय ने जाह्नवी के हाथ से दूसरा कप छीनते हुए कहा।

"ले पी ले भुक्कड़…! तुझे भी क्या याद रहेगा कितनी बड़ी दिलवाली बहन मिली है तुझे…!" जाह्नवी ने बड़े एटीट्यूड से मुस्कुराते हुए कहा।

"हाँ इतना बड़ा दिल है कि अपने बड़े भाई के पेट के हिस्से को भी खा जाती है…! बड़ी आयी घोंची कहीं की…!" निमय ने उसकी नकल करते हुए कहा।

"घोंचू…!"

"घोंची…!"

"गधा..!"

"दिमाग से पैदल..!"

"तू धरती का बोझ..!"

"तू कुम्भकर्णा की अवतार..!"

दोनों की बहस रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, कि तभी उनके पापा उनकी तरफ आने लगे, उनको आता देख दोनो चुप होकर जल्दी से कॉलेज जाने की तैयारी करने लगे।

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कॉलेज में…!

कॉलेज पहुँचते ही जाह्नवी तेजी से क्लासरूम की ओर बढ़ी जबकि निमय वही गार्डन में बैठ गया। जाह्नवी जल्दी जल्दी क्लास की ओर बढ़ रही थी उसी के साथ उसके मन में उपज रहे ख्याल और उसकी धड़कनों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी।

'मैंने जाने अनजाने में उस लड़की को इतना हर्ट किया है कि शायद वो मुझे कभी माफ न करे, और उसका वो खड़ूस भाई वो तो बात भी न करने देगा मुझे उससे…! मैं मानती हूँ कि मैं बहुत सारी गलतियां कर देती हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि कोई मेरे भाई को जरा सा भी तक़लीफ़ दे.. शायद मैं भाई को लेकर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हूँ.. जिस कारण मुझसे उसके करीब कोई और आये ये स्वीकार नहीं.. पर किसी न किसी दिन किसी न किसी को तो आना ही है… फिर क्यों न वही आये जिसे मेरा भाई अपने ख्वाब में चाहता है, क्यों न उसे उसकी हकीकत बना दिया जाए।

मैंने उसे हर्ट किया, पर इसमें मेरी क्या गलती है? शिक्षा ने यही हरकत कर जबरदस्ती मेरे भाई को मुझसे अलग करने की कोशिश की, वो दौलत के नशे में डूबी मुझसे मेरा भाई छिनने की कोशिश करने लगी थी, मैं जानती हूँ भाई उसे बिल्कुल पसंद नहीं करते पर मैं अपने डर को क्या करूँ…! जब मुझे पता चला कि ये भी एक बेहद अमीर घर की लड़की है तो मैं डर गई… कोई मेरे भाई को मुझसे दूर कर देगा बस ये ख्याल ही मुझे अंदर तक झकझोर कर रख देता है, फिर मुझे कोई होश ही नहीं रहता कि मैं क्या कह रही हूँ क्यों कह रही हूँ कैसे कह रही हूँ…! पर ये उससे बिल्कुल अलग है, मैंने कई बार उससे अपने किये बर्ताव की माफी मांगने की कोशिश की मगर हर बार किसी न किसी कारण से नहीं बोल पायी। आज मुझे ये करना ही होगा, मैं अपनी भाई के खातिर कुछ भी कर सकती हूँ, अपनी गलती एक्सेप्ट करने से कोई छोटा नहीं होता, न ही सॉरी बोलने से कोई हानि होगी।

हे गोपाला मदद करना…! मुझे एक मौका मिला है अपने भाई के लिए कुछ करने का, मुझे ये जानना होगा कि क्या वो भी उसे पसंद करती है.. मुझे उन दोनों को मिलाना होगा,, यही मेरे भाई को मेरा नज़राना होगा।' सोचते सोचते जाह्नवी कब क्लासरूम तक पहुंच गई उसे पता ही न चला, हालांकि वह स्वयं को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी मगर अपने चेहरे पर उन भावों को उभरने से रोक पाने में असफल थी। फरी और विक्रम आपस में बैठे गप्पे लड़ा रहे थे, वे तो जाह्नवी की बातें जैसे कब के भूल गए थे मगर अंदर से कुछ बातें हमेशा कचोटती रहती हैं, भले कोई उन्हें चेहरे पर दिखाए या न दिखाए, विक्रम को आज भी जाह्नवी की बातें काटें की तरह चुभती थी।

जाह्नवी ने काफी देर तक सोचा फिर अचानक ही उठकर फरी के पास चली गयी। उसको फरी के पास आता देख विक्रम सकते में आ गया, वह आगे जो कुछ भी होगा उसकी अंदेशा कर प्रत्युत्तर की तैयारी करने लगा।

"हे फरी…! मैं जाह्नवी..। क्या मैं तुमसे थोड़ी देर बात कर सकती हूँ?" जाह्नवी ने बड़े प्यार से पूछा।

"जी.. कहिये!" फरी ने विक्रम की ओर देखते हुए कहा, विक्रम आज जाह्नवी का फरी के प्रति बदला व्यवहार देखकर हैरान था, उसे लगा यह शायद उसकी कोई चाल होगी, इसलिए उसने फरी को बात करने से मना कर दिया।

"मैं जबरदस्ती नहीं करूंगी पर अगर आप बात करना न चाहो तो…!" कहते हुए जाह्नवी ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

"ये कहीं नहीं जा रही है, आप जाकर अपने सीट पर बैठ जाइए..!" विक्रम ने जाह्नवी से कहा, उसके स्वर में उसकी, जाह्नवी के प्रति रुखाई स्पष्ट झलक रही थी।

"भाई….!" फरी ने विक्रम को चुप कराते हुए कहा। "अगर इन्हें कोई बात कहनी है तो उसे सुन लेने में क्या दिक्कत है।"

"ठीक है! मगर फिर सारी बातें मेरे सामने होंगी।" विक्रम ने अपना निर्णय सुनाया। जाह्नवी और फरी दोनो उसके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगीं। जाह्नवी विचित्र असमंजस की स्थिति में घिर गई थी। उसके मन में संकोच के भाव उभरकर घर करते जा रहे थे, वह बहुत कोशिश करने के बाद भी कुछ नहीं बोल पाई।

"क्या हुआ…?" विक्रम ने उसे असमंजस में देखकर पूछा।

"एक्चुअली मुझे कुछ कहना था…!" काफी देर सोचने के बाद जाह्नवी ने कहा।

"हाँ तो कहो न..!" विक्रम ने कहा। "ये तो हम कब से जानते….!"

"भाई.. उन्हें समय दो, अगर उन्हें कुछ कहना है तो जरूर कहेंगी।" फरी ने विक्रम की बात काटते हुए कहा।

"सॉरी…!" जाह्नवी ने जल्दबाजी में कहा, मानों उसकी ट्रैन छूटने वाली हो।

"क्या?" फरी और विक्रम दोनो हैरानी से उसकी ओर देख रहे थे।

"मैंने तुम्हें मतलब आपको बहुत हर्ट किया है फरी..! मैं जानती हूँ मेरा व्यवहार आपको बहुत तकलीफ पहुँचाया होगा..!" जाह्नवी ने किसी अपराधी की भांति सिर झुकाए हुए कहा।

"और ये तुम्हें अब पता चला? आज कैसे पता चल गया?" विक्रम जाह्नवी पर बरसता हुआ बोला।

"भाई आप उन्हें बोलने दो, बीच में टोकना अच्छे शिष्टाचार का प्रतीक नहीं है।" फरी किसी तरह विक्रम को शांत कराते हुए बोली।

"हाँ..! मैं मानती हूँ मेरी सारी गलती थी, पर जब से शिक्षा वाला हादसा हुआ तब से मेरे दिल में अमीरों के प्रति असुरक्षा का भाव भर गया, उसने मेरे भाई को मुझसे अलग करने की कोशिश की, वो हर कोशिश की जिससे मैं टूट जाऊं और फिर जब निमय उसे नहीं मिला तो उसने कॉलेज आना छोड़ दिया। पर वह अब भी उसे बहुत तंग किया करती थी, जिस कारण मैंने गुस्से में उसे खूब भला बुरा बोल दिया…! जब मैंने फरी को बेहद महंगी कार से उतरते देखा तो मुझे पता चल गया ये भी किसी बहुत अमीर खानदान से है। फिर जब ये भाई के करीब जाने की कोशिश करने लगी तो मुझे डर लगने लगा कि कहीं फिर कोई मेरे भाई को मुझसे दूर ले जाने की कोशिश न करे..! मैं बहुत डर गई थी इसलिए फरी के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया… हो सके तो मुझे माफ़ कर देना प्लीज…!

अगले दिन जब मैंने तुम्हें फरी को खाना खिलाते देखी तो मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे भाई बहन को अलग न कर पाई तो दोस्त को उससे अलग कर दी…! मैं मानती हूँ मैंने जो सोचा था वो गलत था, जो किया था वो भी गलत था पर तुम बताओ तुम मेरी जगह होते तो क्या करते? मुझे नहीं पता था कि तुम दोनों भाई बहन हो…!

मैंने गलतियाँ की हैं, क्योंकि मैं अपने भाई को सपने तक खुद से दूर होते बर्दाश्त नहीं कर सकती फिर ये तो हकीकत है…! मैं मानती हूँ.. मैंने जितना तकलीफ दिया वो तो नही ले सकती, न ही उसे कभी ठीक कर पाउंगी..! पर फिर भी उम्मीद करती हूँ कि तुम दोनों मुझे माफ़ कर दोगे…नहीं करना चाहिए फिर भी मैं करती हूँ… क्या तुम ऐसा कर सकते हो?" जाह्नवी ने अपनी सारी बात स्पष्ट रूप से रखकर सुबकते हुए बोली। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, ये उसके पश्चताप के आँसू थे।

"धत्त पगली..! आप एक बार भी आकर बोल देती तो हम मान जाते, अब आप रोना बन्द कीजिये।" फरी उसे बड़े प्यार से अपने पास बिठाते हुए बोली। विक्रम भी काफी भावुक हो चुका था।

"तुम्हारा अपने भाई के प्यार में इनसिक्योरिटी का फील होना जायज है जाह्नवी! मगर इसके लिए तुम किसी और को हर्ट करो इसका तुम्हें कोई हक नहीं!" विक्रम ने लंबी सांस लेते हुए कहा, फरी और जाह्नवी दोनो विक्रम की ओर देखने लगी, विक्रम ने कहना जारी रखा। "किसी को जाने बिना उसे जज करना संसार की सबसे बड़ी गलती है, तुम दोनों भाई बहन अक्सर एक दूसरे के लिए ये गलती करते जाते हों, किसी से प्यार करना गलत नहीं है, किसी को खोने से डरना भी गलत नहीं है मगर किसी और के लिए किसी और को हर्ट करना वो बिल्कुल भी सही नहीं है। इस बार हम तुम्हें माफ करते हैं.. उम्मीद है आगे से यह गलती कभी नहीं दोहरोगी।" विक्रम ने जाह्नवी की ओर देखते हुए कहा।

"थैंक्स…! क्या हम दोस्त बन सकते हैं? मैंने आजतक कभी किसी को दोस्त बनने नहीं बोला.. पर तुमसे बोल रही हूँ.. प्लीज मना मत करना।" जाह्नवी ने फरी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, उसके एक एक शब्द में भार जान पड़ता था जो उसकी सच्चाई के गवाह थे। फरी ने विक्रम की ओर देखा, विक्रम ने मुस्कुराते हुए मौन स्वीकृति दे दी। फरी ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया, जाह्नवी उसका हाथ पकड़ते हुए उसके गले जा लगी, यह देखते ही विक्रम के होंठो की मुस्कान बढ़ गयी मानो उसे इसी दिन का इंतजार था।

क्रमशः…...


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7 Comments

shweta soni

29-Jul-2022 11:39 PM

Nice 👍

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🤫

27-Feb-2022 02:11 PM

चलो कुछ अच्छा हुआ, जाह्नवी ठीक कर देगी सब, लगता विक्रम भी कम नौटंकीबाज नही ☺️☺️

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थैंक यू सो मच ❤️🤗

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Pamela

03-Feb-2022 03:05 PM

Nicely written

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